Friday, 21 February 2025

स्त्री और आध्यात्म!



जैन धर्म के दिगंबर समूह के लोगों का कहना है या मानना है कि औरतों को मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। उनके अनुसार मोक्ष के लिए कम से कम एक बार उन्हें मर्द बन के पैदा होना होगा।  एक जैन दोस्त से जब ये बात पहली दफ़ा पता चली थी तो मैंने इसको अपनी पूरी शक्ति के साथ खारिज़ किया। मेरे पास जितने तथ्य थे ज्ञान थे मैंने सब उड़ेला। एक स्त्री होने और अध्यात्म के प्रति रूचि की वजह से मैं ये बात मानना भी नहीं चाहती थी, अस्वीकृति की एक वजह ये भी हो सकती है बेशक। ख़ैर, बात जो भी हो, लेकिन तत्क्षण खारिज़ कर देने के बावजूद यह मान्यता कहीं तो ज़ेहन में बैठ गयी। आज इस बात को कुछ महीने नहीं बल्कि कुछ साल हो गए हैं लेकिन ये बात आज भी सवाल खड़े करती है कि आख़िर किसी धर्म में एक पूरी ज़ात के बारे मैं ऐसा कुछ क्यों लिखा जाएगा। इस एक बात ने काफ़ी कुछ सोचने और पढ़ने पर मज़बूर किया। हर जगह ये तलाश करती रही कि आख़िर आध्यात्म से स्त्रियाँ क्यों दूर हैं? क्यों कोई एक समुदाय किसी की आध्यात्मिक सफ़र को तय करेगा ? इसकी वजह क्या हो सकती है ? क्या यह महज़ शक्ति का दुरूपयोग है, पितृसत्तात्मक समाज की एक मामूली सोच है या फिर कोई सच किसी गहरे गढ्ढे में दफ़्न है।

काफ़ी जगह घूमने टहलने के बाद, सोचने विचारने के बाद, अभी तक के अर्जित ज्ञान के हवाले से मैं ये कह सकती हूँ कि बात सिर्फ़ स्त्री या पुरुष  की नहीं बल्कि मानसिक गहराई की है शायद। तीस साल की उम्र और कई तरह के समाज में रहने के पश्चात के तज़र्बें से ये बता सकती हूँ कि स्त्रियों की चेतना का स्तर उसी समाज के पुरुषों के चेतना के स्तर से नीचे है। ज्यादातर मामले में। मैं यह बात आज भी खारिज़ ही करती हूँ कि स्त्रियाँ आध्यात्म के चरम पर नहीं पहुँच सकती लेकिन हाँ अब मैं ये जरूर मान सकती हूँ कि पुरुषों के मुक़ाबले कम पहुँच सकती हैं।  इसकी बहुत सी वज़हें हैं। आध्यात्म का पूरा पूरा अर्थ ही इतना है कि आप स्वयं से कितना परिचित हैं, स्वयं और ब्रह्माण्ड के रिश्ते से कितने परिचित हैं। आध्यात्म शब्द को देखा जाए तो यह शब्द "आत्म" से निकला है जिसका मतलब स्वयं का ज्ञान, आत्मचिंतन और आत्मसाक्षात्कार होता है। यह भौतिक संसार से परे जाकर आत्मा और ब्रह्मांड के संबंध को समझने का मार्ग है। आध्यात्म का संबंध आत्मा, मोक्ष, ध्यान, योग, और वैराग्य से होता है। आध्यात्मिकता का पूर्ण सार बस इतना है कि यह जीवन के गहरे अर्थ, अस्तित्व के उद्देश्य और आंतरिक शांति को पाने की खोज। अब बतायें कि कितनी स्त्रियाँ इस खोज़ पर हैं? कितनी स्त्रियाँ बैठ रही हैं शांत, असीमित और अनियंत्रित ज्ञान अर्जित कर रही हैं, स्वयं के बारे में जान रही हैं, ब्रह्म का मतलब जान रही हैं। हालाँकि देखा जाए तो विधिवत पूजा पाठ, उपवास, चढ़ावे में वो आगे हैं लेकिन वो सब मात्र  एक अंधविश्वास का हिस्सा है जो उन्हें और ज्यादा सच्चाई से दूर क्र रही है। क्यूँकि असली ज्ञान और आध्यात्म आपको यह बता देगा कि इन सब का कोई वास्तविक मतलब नहीं। सांसारिकता में  ख़तरनाक उलझी स्त्रियाँ अंत में इतना ख़ाली रह जाती हैं कि उनका शरीर एक खोंखले ढाँचे के सिवा कुछ नहीं होता। एक बक्सा, एक मशीन जो समाज के फ़र्ज़ी नियमों से भरा हुआ है, और ज्ञान से ख़ाली, जो ईंधन डालने से हरकत कर रही है बस। स्त्री अंत में बस एक शरीर बन के रह जाती है एक स्वतंत्र आत्मा के रूप में वो कहीं गुम हो चुकी होती है। आत्मज्ञान का "अ" भी नहीं पता कर पाती ताउम्र। क्यूँकि उन्होंने आध्यात्म की जगह परम्पराओं में अँधा डूबे रहने को स्वीकार किया, उन्होंने सत्य के तलाश में समय व्यतीत नहीं किय। इसलिए भी कि मालूम नहीं है कि जीवन जीने के और तरीके भी हैं। वही अगर देखा जाए तो मर्द भी कुछ ख़ास अलग से प्रयास कम ही कर रहे हैं लेकिन क्यूँकि वो इतना उलझते नहीं आजीवन, तो उनमें वैराग्य फिर भी थोड़ा आ ही जाता है। आत्मज्ञान होने की सम्भावना भी ज्यादा रहती है। सत्य की खोज़ सामाजिक दायरे से परे का सफ़र है जो पुरुष फिर भी कर पाते हैं स्त्रियों में इसकी सकत भी कम ही होती हैं।  वजह आपको, मुझे, हम सबको मालूम है। लेकिन जो भी है, यह आभास जरुरी है कि आप जो ज़िन्दगी जी रहे हैं उसमें आत्मज्ञान नहीं है, स्व से परिचय नहीं है, आपको अपनी ही आत्मा के बारे में कुछ नहीं पता, आपको अपने बारे में कुछ नहीं पता, आपको अपना सफ़र नहीं मालूम, आपने अपनी क्षमताओं का मुश्किल से कोई उपयोग किया। आपने एक बहुत ही दायरा बद्ध ज़िन्दगी जी जिसमें कुछ नहीं सीखा अंततः। ख़ाली हाथ जाने का मतलब ख़ाली हाथ जाना होता है लेकिन अगर हम अनुभवों से और अपार संभावनाओं से वंचित चले जाएँ तो हमारी ज़िन्दगी ज़ाया हो जाती है। अपनी अपनी ज़िंदगियाँ ज़ाया होने से बचाइए। नियंत्रणों से बंधनों से आज़ाद हो के आत्मबोध, आत्मज्ञान के लिए जीना शुरू करिये।  पढ़िए, जानिए और चिंतन करिये। फिर पता चलेगा कि पढ़ना जानना और सोचना कितना जरुरी है ख़ुद को बेवजह ख़र्च हो जाने से बचाने के लिए।


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